लेखनी कविता - कलकत्ते का जो ज़िक्र किया तूने हमनशीं - ग़ालिब

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कलकत्ते का जो ज़िक्र किया तूने हमनशीं / ग़ालिब कलकत्ते का जो ज़िक्र किया तूने हमनशीं इक तीर मेरे सीने में मारा के हाये हाये वो सब्ज़ा ज़ार हाये मुतर्रा के ...

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